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Rekha Agrawal (चित्ररेखा)

Others

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Rekha Agrawal (चित्ररेखा)

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एक कप कॉफी ईश्वर के साथ

एक कप कॉफी ईश्वर के साथ

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बहुत दिनों से मंथन चल रहा था

ईश्वर कैसे दिखते होंगे

निराकार या साकार

निर्गुण या सगुण

व्यक्त या अव्यक्त

आदि ऋषि बहुत कुछ कह गए

धर्म जाने कितना कुछ सीखा गए

हर जगह व्याख्या परिभाषा व मीमांसा

ऊद्वेलित भाव से

यू ही बैठ गयी थी छत पर

नीले नीले अंबर पर स्वर्णिम आभा छाई थी

आंखें बंद किये ईश्वर की छवि साकार करती रही

 पल पल समय बीतता रहा

 भान भूली सी मैं बैठी रही

 अचानक बंद नेत्र चौंधिया से गए

 चौंधियाती सी रौशनी में

बमुश्किल आंख खोलकर देखा

 अरे! यह तो साक्षात ईश्वर थे!

जो सामने खड़े मंद मंद मुस्कुरा रहे थे

बार बार आंखें मल रही थी

विश्वास नहीं हो रहा था

 घोर तप व साधना के पश्चात भी

 जिस ईश्वर को ऋषि मुनि पा न सके

वे ठीक मेरे सामने खड़े हैं!

कहीं मैं दिवास्वप्न तो नहीं देख रही!

तेजोमय दिव्य ओजस्वी रूप

नहीं ये सपना नहीं था

रोज़ ईश्वर से कुछ न कुछ मांगती रहती थी

किंतु आज उन्हें देखकर

कोई कामना नहीं जागी

अचानक ध्यान आया

प्रभु दूर से आये होंगे

उन्हें चाय कॉफी पिलाई जाए

प्रभु! आप क्या लेंगे

मैंने हाथ जोड़कर पूछा

वे केवल मुस्कुराए

अपने स्वागत अभिनंदन का संपूर्ण दायित्व

मुझ पर छोड़ चिदानंदा आनंद मग्न थे

दौड़ती भागती रसोईघर पहुंची

आदतन चाय बनाने के लिए हाथ उठे

फिर लगा यह आम आदमी का पेय है

ईश्वर के लिए कॉफी बनाई जाए

जल्दी जल्दी कॉफी बनाई

चांदी की खूबसूरत ट्रे निकालने में

थोड़ी देर हो गई

तेज तेज कदमों से वहाँ पहुंची

किंतु यह क्या!

ईश्वर दिख नहीं रहे थे!

बदहवासी में ज़ोर ज़ोर से पुकार रही थी

ईश्वर…! ईश्वर…! मेरे प्रभु…!

ट्रे मुंडेर पर रख कर

इधर उधर ढूंढने लगी

तभी छन्न की कुछ आवाज आई

देखा तो एक बिल्ली जाने कहाँ से चली आई थी

औंधे कप से मज़े में कॉफी पी रही थी

अत्यंत सहज भाव से मिल जाने वाले ईश्वर को

चांदी की ट्रे के दिखावे में खो दिया था

नजर बिल्ली पर जाकर टिक गई

शायद वह मुझसे ज्यादा भाग्यशाली थी।


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