बड़ी हो गई हूँ
बड़ी हो गई हूँ
चावल का कलश
जिसे गृह प्रवेश के समय
आगे बढ़ते कदमों से
धरा पर बिखेर दिया था
आज उस बिखराव को
सिद्दत से समेटने के लिए
झुकने लगी हूँ
कभी सही और गलत
दिन और रात की तरह होते थे
आज समय के और भी कई
कालखंड तलाशने लगी हूँ
पहले जज की भूमिका
अख्तियार कर
निर्णय सुनाया करती थी
अब संभावनाओं की तलाश में
कुशल वकील की तरह
मुकदमे की तारीखें
आगे बढ़ाने लगी हूँ
माला की लड़ी शुभ्र धवल ही हो
एक ही रूप रंग की हो
यह जरूरी तो नहीं
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अलग अलग रंग व आकार की
अहमियत समझने लगी हूँ
पुराने नियमों व परम्पराओं की
जाने कितनी बार धज्जियां उड़ाई है
आज उन्हीं की रहनुमाई
करने लगी हूँ
बड़े ही ताव से
अटैची पैक कर
घर की दहलीज लांघने के लिए
आमादा रहने वाली
अब घर से बाहर जाते कदमों को
हर संभव रोकने की
कोशिश करने लगी हूँ
पहले भीड़ से अलग
अपनी ही चुनी
पगडंडी पर
चला करती थी
अब आम रास्ते सुविधाजनक
और भीड़ सुरक्षित लगने लगे हैं
लगता है
बड़ी हो गई हूँ।