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Moren river

Inspirational Others

4.5  

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प्रकृति-पुरुष से चलती सृष्टि

प्रकृति-पुरुष से चलती सृष्टि

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प्रकृति-पुरुष से चलती सृष्टि 

निर्बाध गति को न बाँधों तुम !

भटकाव जीवन का ध्येय नहीं हो 

बिखराव जीवन में लेश नहीं हो..

सबला हो, नहीं अब अबला तुम

तुम साक्षी हो निर्माण सृष्टि की

हो गात मृदु रख नम नेत्र सदा ।।1।।


नारी होना ही मायावी दुनिया में 

रह गई है कोई आम बात नहीं…

अरी रहित होना ही तो आम नहीं

सामर्थ्य नारी अपना जानो तुम

जीवन सिंचित तेरे आँचल में नित

क्षमता पर तेरी संशय अब कोई नहीं

धैर्य शस्त्र - अश्रु अस्त्र धारी तुम।।2।।


कौन जीता है? कौन टीका है ?

सम्मुख तेरे सम्मोही सामर्थ्य के

मही हिलाने का रखती साहस

तभी तो महिला कहलाती हो तुम।

हो स्नेह सिक्त सिंचन करती तुम

पीढ़ियों को शिखरोन्मुख कर्त्री..

सामर्थ्य सदा ही पोरों में भरती।।3।।


आदि से ही स्तुत्य तेरे कर्म महान

अनर्गल व्याख्यानों के नाम पर…

अब होने दें न अपना अपमान,

वहीं प्रकृति का हो स्वतः सम्मान

पुरुष-प्रकृति हैं दो रूप सृष्टि के

सदा रहे यह भान मृत्यु लोक में

विविध रंगी प्रकृति है वरदान यहाँ।।4।।



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