प्रकृति की रक्षा हमारा कर्तव्य
प्रकृति की रक्षा हमारा कर्तव्य
चहुँ ओर लहराते वृक्ष, खिलखिलाते रंगीन पुष्पों की बहार,
हरियाली चादर ओढ़ प्रकृति, करती धरा का अनुपम श्रृंगार,
प्रकृति है माता स्वरूप, प्रकृति से बंधी हमारी जीवन डोर,
निस्वार्थ इतना कुछ देती है हमें, जिसका नहीं है कोई छोर,
और हम मनुष्य उसी प्रकृति के साथ, कर रहे हैं खिलवाड़,
स्वयं अपने हाथों से अपने विनाश का खोल रहे हैं किवाड़,
कभी सोचा, ऐसा ही होता रहा गर, तो भविष्य कैसा होगा,
हमारी आने वाली पीढ़ियों का जीवन कितना कठिन होगा,
प्राण उसी के ही हर रहे हैं हम, जो है हमारी प्राण दायिनी,
स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, कैसी है इसमें बुद्धिमानी,
अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु वन के वन, काटते जा रहे हैं निरंतर,
सोचते भी नहीं कितने निरीह प्राणी हो जाएंगे इससे बेघर,
कितनी बार चेताया है प्रकृति ने, संभल जाओ तुम इंसान,
फिर भी मानव वही करतूत दोहरा, खुद को कहता महान,
प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में, आता है समस्त संसार,
निर्दोष मूक प्राणियों का भी तो इसमें छिन जाता घर बार,
प्राकृतिक आपदाएं सदा छोड़ जाती हैं बरबादी के निशान,
बार बार भी विपदाएं झेलकर भी संभलता नहीं ये इंसान,
यह दर्द, यह दुःख, यह विनाश, सब कुछ इंसानी करतूत,
आखिर प्रकृति के इस दर्द को इंसान कब करेगा महसूस,
हम अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, एक दूसरे को दोष देकर,
प्रकृति है हमारी ही जिम्मेदारी, जिससे जाते हैं हम मुकर,
प्रकृति भी लेती है बदला याद दिलाने की है ज़रूरत नहीं,
भविष्य होगा अन्धकार, जो बदली मानव ने करतूत नहीं,
पाँच जून विश्व पर्यावरण दिवस, हमें यह याद दिलाता है,
प्रकृति का रक्षण हमारा कर्तव्य, भविष्य का यह रास्ता है,
किंतु केवल एक दिन विशेष क्यों प्रतिदिन हमें सोचना है,
हर क्षण प्रकृति संग रहते हम रक्षण भी प्रतिदिन करना है,
जीवन देती है प्रकृति, माता स्वरूप ही करती है रखवाली,
फिर उस माँ के हाथों में, क्यों थमा रहें हम दर्द की प्याली,
आओ हम करें प्राण आज करेंगे सदा प्रकृति का सम्मान,
प्रकृति हमारा वर्तमान, प्रकृति भविष्य प्रकृति से ही जान।