प्रकृति की ऑंखें
प्रकृति की ऑंखें
प्रकृति का सौंदर्य तो बहुत अनुपम है
देखने के लिये चाहियेऑंखें उत्तम है
आजऑंखें जुगनू को सूरज मान बैठी है
बिजली के बल्बों को वो तारे मान बैठी है
उन आँखों को प्रकृति का सौंदर्य कैसे दिखेगा,
जोऑंखें बस कृतिमता का वहम पाल बैठी है
न दिखेगी उन्हें सूरज की लाली
न दिखेगी उन्हें संध्या की बाली
उन्हें दिखेगी कृतिम रंगों की जाली
वो बनावट को अपना मान बैठी है
ये बनावटी जिंदगी तो साखी एक भ्रम है
प्रकृति के बग़ैर न होंगे कभी खुश हम है
देख प्रकृति को ध्यान से मेरी आँखें,
बनावटी चीजो को फेंक दे बीच रास्ते
तू 60 क्या 100 साल फिर से जियेगा साखी
तू बस प्रकृति को सदा ही बांधता रहना राखी
देख संसार को प्रकृति की आँखों से
खत्म होगा तेरा जो भी गम है बाकी
