परिवर्त्तन
परिवर्त्तन
ये देश बनेगा आज गवाह उस परिवर्तन का,
जो परिवर्तन हम लाएंगे,
जो रुकी पड़ी है बरसों से,
वो गंगा पुनः बहाएंगे,
वो रूढ़िवादिता की जंज़ीरों को,
हाथों से अपने तोड़ेंगे,
जो चल रही है हवा मनचली,
उसे दिशा दिखाकर जाएंगे,
जाति पाति का भेद मिटाकर,
समाज स्वच्छ बनाएंगे,
बन भगत और बोस आज हम,
नया इतिहास बनाकर जाएंगे,
ना बुझेगी ये मशाल,
जो हमने आज जलायी है,
देश में नारी का अब,
सम्मान बढ़ा कर दिखाएंगे,
ना इच्छा हममें धन वैभव की,
ना सत्ता का कोई लोभ है,
पर देश बदलने की ख़ातिर,
नयी राजनीति हम लाएंगे,
जिस सम्मान से वंचित अब तक,
भारत माँ का दामन सूना है,
उस भारत माँ के मस्तक में हम,
स्वर्णिम मुकुट सजाएंगे,
बन दधीचि भारत को अपना,
अस्थि अस्त्र दे जाएंगे,
आज बन भगीरथ पुनः धरा पर,
गंगा पवित्र बहाएंगे।
वो गंगा नयी बहाएंगे।।