परिवेश और आदमी
परिवेश और आदमी
यह ज़मीन उसकी, यह आसमान उसका,
बनाया उसने सबको एक जैसा,
यह तेरा, यह मेरा करता हुआ तू,
रह गया इन मकानों के बीच अकेला।
नदियों का बहाव नहीं है यहाँ,
पहाड़ों में अब गूँज नहीं रही जहाँ,
पंछियों की किलक़िलाहट भी बंद हो गयी,
इतना पाप लेकर तू जाएगा कहा।
ना कोई तेरा अपना बचेगा,
ना कोई तेरा सहारा रहेगा,
उस मूक जानवर को मार कर,
तू ख़ुद कब तक जियेगा।
उजाला बटोर अब सूरज भी चला गया,
रोशनी साथ लिए आज चाँद भी नहीं आया,
फिर उस अंधेरे में काँपेगा आज तू,
जो इतना विनाश करके भी तुझे चैन ना आया।
तेरी चिंगारी से तू ही जलेगा,
तेरा बादल तुझे ही निगल जाएगा,
अभी भी वक़्त हे तू ज़रा ठहर जा,
तेरा तूफ़ान तुझे ही उड़ा ले जाएगा।।
