किस्से
किस्से
एक पल में ज़िन्दगी,
कहाँ से कहाँ ले जाती हे,
खिलखिलाती धूप भी,
अँधेरे में बदल जाती है।
जब साँस लेना भी,
मुश्किल लगता है,
दिल जैसे धड़कना,
ही बंद कर देता हे।
कसमें जुदा न,
होने की खाते हैं,
बस एक किस्सा,
बनके रह जाते हैं।
कई सुने हुए,
तो कई सुनाये हुए,
यह किस्से,
कहानियाँ बन जाते हैं।
कुछ समाज ने,
बनायीं हुई,
कुछ जड़ता ने,
पकड़ी हुई।
यह सोच,
बदलने की हिम्मत,
आज तक,
किस में हुई।
नहीं पता उसने क्या,
तकदीर में लिखा है,
लेकिन यह रास्ता,
हमने चुना है।
अब डट कर,
सामना करना है,
या हार मान के,
झुक जाना है।
