परिवार और समाज
परिवार और समाज
परिवार और समाज एक ही ,
सिक्के के दो पहलू समझिए ।
परिवार के बिना समाज और ,
समाज के बिना परिवार अधूरा है।।
चाहे परिवार हो या समाज प्रेम ,
रूपी डोर से बंधकर ही चलते ।
फूट ईर्ष्या कपट और छल के द्वारा,
सुख शांति और अच्छे लोग नही मिलते।।
एकता प्रेम सद्भाव समता दोनो को ,
मजबूत आधार प्रदान करते हैं ।
जो भटके वही मिटा गया परिवार ,
हो या समाज सदा जलते हैं ।।
जिम्मेदारी समझ अपनी कर्तव्य को ,
सदा प्रसन्नता से करते रहो ।
हमारे सुधरने से ही परिवार समाज ,
और देश सुधरेगा सदा सुधरते रहो।।