परिंदे सोच में हैं
परिंदे सोच में हैं
परिंदे सोच में हैं आजकल इतना सन्नाटा क्यों छाया हैं
न हवा में दूषित धुँआ है, न गाड़ियों का ज्यादा शोर है
कहाँ गए इंसान! क्या उनको भी किसीने किया कैद है?
न इंसानों की कोई भाग दौड़ है, न उनका कलोल है
यह बात सच है इंसान ने प्रकृति से खिलवाड़ किया है
गर सुधर जाए तो यह धरती और खूबसूरत बन सकती है
परिंदे सोच रहे है कैद में रहकर अब इंसान भी समझ गया है
इस जहाँ में सभी जीव का आज़ाद रहना भी जरूरी है।
