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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Comedy Romance Tragedy

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संजय कुमार जैन 'पथिक'

Comedy Romance Tragedy

प्रेमपत्र-गब्बर इज बैक

प्रेमपत्र-गब्बर इज बैक

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मेरी फुलझड़ी

मेरी हथकड़ी

जब तुम रखती हो जमीन पर पाँव

जी करता है फूंक दूं सारा गांव


देसी ठर्रे सी दहकती तेरी आँखें

उड़ा दूं साले को जो तेरी ओर झांके

जेबकतरे की फूटी खोपड़ी सी लाल

चुड़ैल तुझे लग गया सोलवां साल

तेरे खून जैसे लरजते होंठों की कसम


आज तू न आई तो मार दूंगा बम

ये सांभा कहता है

प्रेमिका से इतना कठोर न बनूँ

अबे तो क्या तीन स्टेट की पुलिस

को चकमा दूं

और तेरे सामने बिना एनकाउंटर

सरेंडर कर दूं


मैं तो गब्बर हूँ और गब्बर ही रहूंगा

ये अपने कुत्ते की लाश जैसे कान

खोलके सुन ले आखिरी बार कहूँगा

चली आ आज

फरीदाबाद ओल्ड मेट्रो स्टेशन के पीछे

साई मंदिर के नीचे


आज ही अपना ब्याह रचाएंगे

नहीं आई,

तो काट के ऐसी जगह फेंकूंगा

कुत्ते हड्डी नहीं पाएंगे

मेरी चिट्ठी को तार मत समझना

समझना बन्दूक की गोली

और आजा पहन के हरी चोली


तेरे लिए खाली है पहाड़ी की खोली

मैं डाकू हूँ तो क्या हुआ

तू भी तो थानेदार की लड़की है

धंधा तेरे बाप का भी वही है

हम बिना लाइसेंस के,


वो with लाइसेंस लूटता है

हम दोनों का माल

एक ही सुनार खरीदता है

तू मिल गई तो शायद सुधर जाऊँगा

नहीं तो एक बार फिर


किसी ठाकुर के हाथ मर जाऊँगा

जल्दी आ मेरी उमंग

मेरी तरंग,और भंग

मेरी बारूदी सुरंग

तुम्हारा तमंचा कर लो कैच

गब्बर इज बैक।


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