प्रेमिकाएं
प्रेमिकाएं
जिस पर प्रेमी बन पुरूष अधिकारी सा बन जाता है
अपने प्रेम लहरों में प्रेमिकाओं को डुबोता जाता है
अधिकार सपन्न कब होती है प्रेमिकाएं
निश्छल प्रेम में डूबी होती ये मासूम बालाएं
हक इतना जताते कि पुरूष प्रेमी से पति बन जाते
निश्छल भावनाओं तक को ये खा जाते
मन भरते ही ह्रदय से उतार दी जाती है
अधिकार जताती पत्नी कभी नहीं बन पाती है
किसी भी तरह का अधिकार उनके हिस्से कब आता
आँसू, दर्द, तड़प बस यही उनकी आंखों से बह कर
जीवन मे बस जाता है
अपनी दुनिया में लौट जाते हैं वे आसानी से
मन भर जाता जिनका अपनी प्रेमिका की कुर्बानी से
कभी जाति, कभी धर्म, कभी ऊँच -नीच
कभी आकर्षक, प्राकर्षन, तो कभी हवस,
तृष्णा की भेंट चढ़ जाती है
अपने प्रेम में त्याग करती प्रेमिकाएं सवाल तक
नहीं कर पाती
ऊपर कठोर रूप तो अंदर ही अंदर घुटती जाती
क्या यही प्रेम की परिभाषा है ??
कोई क्यों नहीं समझता निःस्वार्थ, निश्छल प्रेम पूरित
प्रेमिकाएं जीवन के पथ में संगिनी बनकर साथ
निभाने की रखती अभिलाषा है
क्यों छोड़ जाते हैं नीर बहाने को तन्हा
क्यों नही बनाई जाती वे जन्म-मरण की साशा है
