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Sobhit Thakre

Abstract

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Sobhit Thakre

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दोस्त तू है मेरी जिंदगानी

दोस्त तू है मेरी जिंदगानी

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ये तेरी मेरी है कहानी 

दोस्त तू है मेरी जिंदगानी, 

महलों का तू राजकुमार 

मैं झोपड़ी की निवासी 

करती रहती हूँ नादानी,

अमीर तू गरीब मैं 

फिर भी बुने जा रही हूँ कहानी,

दोस्ती है अपनी गहरी 

ऊँच -नीच का फर्क नही कोई 

जख्म लगे एक को

दूसरा बन जाता मरहम नूरानी,

आसमान को छूता कद है तेरा 

और मैं क्षितिज की आस में बैठी 

धरती की प्राणी, 

मैं खुद को खुद में समेटे रहती 

जैसे हो ठहरा दरिया का पानी, 

तू गहरा विशाल समुद्र सा 

ह्रदय तेरा बोलता मधुर वाणी, 

तू थामे रखना हाथ मेरा 

सफलता ही है तेरी दोस्ती पानी,

तू अंधेरों से निकाल लेगा मुझे 

इस उम्मीद की ढेरों है मेरे पास निशानी,

छोड़ न देना बीच राह में 

विनीत भाव से कर रही हूं जुबानी।


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