प्रेम
प्रेम
परिभाषा मत बदलो
पवित्र प्रेम की...
शारिरिक चाह से परे
अपनी जीवनशैली में
एक दूजे के लिए
अगाध विश्वास उत्पन्न करो...!!!
शक़ की सुई
समूल नाश करो
और जीवन को
सुख-शांतिमय बनाओ...
प्रेम कलुषित मनोभाव में
किसी भी सूरत-ए-हाल में
क़ायम नहीं रह सकता...
अपने दिल में
वो जज़्बा पैदा करो
कि तुमसे ही
दुसरों को
निर्मलता का
पूर्ण एहसास हो...
और तुम ही
दुसरों के लिए
आशा का दीपक जलाओ...
आओ ! इस विश्व को
एक सुंदर आयाम देने में
स्वयं को न्यौछावर करो...
प्रेम-दीप प्रज्वलित कर
मानवता का स्थान ऊँचा करो...!!!
