दीवाली की उजास भर लेंगे
दीवाली की उजास भर लेंगे
कालिमा की चादर जो अपने पैर और पसारे ,
तो मन के उजाले व उजास भरी चादर से तर देंगे !
जो ना दिखे चकमक चमकते सितारे फ़लक पर ,
तो टिमटिम करते ये जुगनू सारे अंधकार हर लेंगे !
काली घनीघनी स्याह रात के वृहद आँचल को ,
कंदील व कनक डिठौने की जगमगाहट से भर देंगे !
आज की रात जो छुप भी जाएं सारे आफ़ताब ,
तो मिट्टी के दीयों की रौशनी से ही उजाला कर देंगे !
करियाए ज़ब मन तम से और जो नींद ना आए ,
तो अपनों की दुआओं का तकिया अपने सर लेंगे!
रजनी आलोक को तरसे, आलोक दूर खड़ा विहंसे ,
तो नीरव रात्रि के निराशा पर आशा के मोती जड़ देंगे !
आख़िर कब तलक अंधेरा रोक सकेगा रौशनी को ,
अंततः रात के हाशिए से सुबह बाल अरुण जनम लेंगे !
