आत्मज्ञान का सुदीप जलेगा
आत्मज्ञान का सुदीप जलेगा
आत्मज्ञान का सुदीप ज़ब जल चुका है ,
तो अज्ञान का तिमिर ढलकर ही रहेगा !
सद्भाव के दीप में स्नेह का तेल भरकर ,
खिलखिलाते चेहरों से घर आँगन सजेगा !
दीपक संग करेंगी रम्शियां कर्त्तन नर्तन ,
अंधेरे पर प्रकाश का विजय होकर रहेगा !
अथक संघर्ष एक समीकरण में बंधेगा ,
धुंध को चीरकर प्रखर प्रकाशपुंज दिखेगा !
रौशनी की रश्मियां मचलकर चमकेंगी ,
अबके दीवाली पर आकाशदीप जलेगा !
नवप्रभात का नवविहान ज़ब उगेगा,
तिमिर भेदकर ज्ञान का दीपक जलेगा।