मानवमात्र तो कठपुतली ठहरा
मानवमात्र तो कठपुतली ठहरा
अपने मन में छल - कपट न रखना न किसी से द्वेष :
हाथ जोड़कर सर्वे सुखाय का देते रहो सबको संदेश !
सिर्फ सोचने से नहीं होगा , करना होगा श्रम अपार :
कार्य मनोरथ भी शीघ्र सिद्ध करेंगे सबके सृजनहार !
मानवमात्र तो एक कठपुतली ठहरा न चले कोई जोर :
ऊपर वाले के हाथों में थमी हुई है,सब ही की तो डोर !
नाच रहे सब उनके इशारे पर, नचा रहा वो नचैईया :
हम सबको भवसागर पार लगाये एक वही खवैईया !
भगवन पर रखना सच्ची आस और रखना विश्वास :
ईश्वर के अलावा बैठो जाकर माँ के चरणों के पास !
जीवन तो क्षणभंगूर ठहरा , आज सांस है कल नहीं :
परहित में लगाओ खुद को जीने का असली अर्थ यही!