ना हो कोई लिप्तता ना पिपासा
ना हो कोई लिप्तता ना पिपासा
हे सूर्यदेव, हे जग के प्रकाशक,
प्रकाशित तुम अंतरात्मा कर दो !
दूर कर दो अंतस की घोर निराशा,
जीवन में प्रेम और विश्वास भर दो !
निस्सार सा यह जग और सूना मन,
बिंध लो प्रेम सरस भक्ति से भगवन !
ना हो कोई लिप्तता ना कोई पिपासा,
बनूं सकूँ किसी अँधेरे जीवन की आशा !
सूर्य सी प्रखर प्रकृति है ज्ञानी जन की,
विस्तारित कर सकूँ मैं भी वाणी मन की !
सीत पवन समताप है , ऊर्जित करें शरीर,
पुष्टि प्रदायक छठ पर्व से मिटें जनन की पीर !