प्रेम
प्रेम
प्रेम में अश्रु नहीं,
मुस्कान है आधार।
ये तन का मिलान नहीं,
अंतर्मन का है साथ।
प्रेम में झूठ नहीं,
विश्वास का अहसास।
ये पाने का नाम नहीं,
इसका समर्पण ही संस्कार।
प्रेम में शक्ति का नहीं,
भक्ति का है रास।
ये दिलों का खेल नहीं,
दिल का मेल अपार।
प्रेम में सौदा नहीं,
तर्पण का है सम्मान।
ये न देखे रंग रूप,
गुणों की खान हजार।
प्रेम में शत्रुता नहीं,
मित्र भाव ही प्रधान।
ये न जाने जाट पात,
बस माने मन की बात।
प्रेम में जलन नहीं,
श्रद्धा संग इंतज़ार।
ये त्याग का सागर है,
जिसमें मोती दस हज़ार।
