" प्रेम "
" प्रेम "
कभी मोम सा, कभी रेत सा,
कभी गैर सा तो कभी आत्मिक सा,
तेरा एहसास जब भी होता है....
मैं खिल जाती हूँ उजली धूप की तरह।
कुछ तो प्रेम देखा है मैंने तेरे हृदय में
जो लिपट लिपट जाती हूँ अपने ही साये में ।।
कभी मोम सा, कभी रेत सा,
कभी गैर सा तो कभी आत्मिक सा,
तेरा एहसास जब भी होता है....
मैं खिल जाती हूँ उजली धूप की तरह।
कुछ तो प्रेम देखा है मैंने तेरे हृदय में
जो लिपट लिपट जाती हूँ अपने ही साये में ।।