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Lingraj Majhi

Classics

3  

Lingraj Majhi

Classics

प्रेम

प्रेम

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उन्मुक्त गगन का परिंदा है 

प्रेम

बरिशों मे कैद किया नही 

जा सकता।


हृदय मे झरता अमृत है

प्रेम

नफरतों के विष से दफनाया नहीं

जा सकता।


रिश्तों को बांधने वाला

पवित्र डोर है

प्रेम

तलवारों से काटा नहीं 

जा सकता।


दो आत्माओ का 

मंदिर है 

प्रेम

षड्यंत्र से विध्वंस किया नहीं

जा सकता।


ईश्वर की बिभूति 

प्रकृति की धड़कन है

प्रेम


दावाग्नि से जलाया नहीं

जा सकता।


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