प्रेम
प्रेम
है मुदित मन आज प्रीतम के दरस पाउंगी मैं।
आज उस पावन मिलन पर स्नेह बरसाउंगी मैं।।
ऐ धनक तू तन को मेरे आज सुंदर रूप दे।
देखकर मैं खुद चकित हो जाऊं ऐसा रूप दे।।
ऐ घटा केशों को मेरे आज सुंदर बांध दे।
लट जरा रखना खुली जूड़े में गजरा बांध दे।।
चँद्रमा माथे पे मेरे बनके टीका सज जरा।
ऐ निशा नैंनों में मेरे आके तू काजल लगा।।
चाँद और सूरज मेरे कानों में कुंडल बन धधक।
लालिमा फूलों की मेरे अधर पर आकर चमक।।
दामिनी बंध जा मेरे पाँवों बन कर पैंजनी।
पुष्प वल्लरियों कटि पर सजो बनकर करधनी।।
मेरे अंग प्रत्यंग पर ऐ कुसुम सज बन अलंकार।
मंत्रमुग्ध हो जाए प्रीतम देख कर मेरा श्रृंगार।।
हाथ में मेंहदी मेरे पाँव महावर रंग दे।
केवड़ा, चम्पा सुगंधित गंध मेरे अंग दे।।
रीझ कर मुझ पर मेरा प्रीतम लगा ले अंग से।
भर के आलिंगन में रंग दे प्रेम के हर रंग से।।