प्रेम
प्रेम
जब तू सुनाता था अपनी प्रेम कहानियाँ
और मैं लिखती थी कई खत तुझे दिल में,
लिखे थे,पर कभी कागज़ पर उतरे ही नहीं,
मौन प्रेम तेरे चारों तरफ था,तुझे दिखा नहीं,
प्रेम का मतलब भी समझती नहीं थी,तब से
तुमसे प्यार हुआ और आज भी करती हूँ मैं,
पर तुम हमेशा से जानते थे, मैं करती हूँ तुमसे,
और मैं हमेशा से जानती थी, तुम नहीं करते l

