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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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प्रेम विटप की छांह

प्रेम विटप की छांह

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आंसू पोंछे अभय दे,बने सहारा बांह।

सबको मिल पाती नहीं,प्रेम विटप की छांह।

प्रेम विटप की छांह, दुपहरी भोर सरीखी।

रात अमावस सदा, पूर्णिमा जैसी दिखती।

जीवन समझो धन्य, मिले जो प्रेम प्रकासू।

सुख को सुखकर करे, दुःख में पौंछे आंसू।


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