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Artee priyadarshni

Romance

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Artee priyadarshni

Romance

प्रेम के शब्दों का उजास

प्रेम के शब्दों का उजास

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जितना मैं तुझसे दूर जाती हूं 

खुद को उतना ही करीब पाती हूं

दूरियां युगों की है फिर भी

तुम्हें कृष्ण और खुद को मीरा समझ लेती हूं ।


एक उत्कंठा थी ....खुशी थी

तुम्हें पाने की ....पा लिया ...

वही हसरत अब मेरी चेतना को

विलुप्तता में बदल रही है।


काश कि जीवन का भावार्थ 

कुछ शब्दों में निहित होता

तो झूठ का पुलिंदा बांधकर भी 

जी लिया जाता ....और ...

तुम्हें पाया भी जा सकता..


किंतु प्रेम की परिभाषा 

मैंने अब लिखी है 

सांध्य जीवन की यात्रा में 

लेकर प्रश्नों की लंबी फेहरिस्त


सुन रहे हो ना तुम...

जब भी जीवन की आपाधापी में घिरो

उम्मीद का दीया जला लेना

शब्दों को गीता और

मन को कृष्ण बना लेना

मैं प्रेम की बाती बन 

विश्वास की लौ बिखरा दूंगी

तुम हमारे प्रेम के शब्दों का उजास चारों ओर फैला देना


     


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