प्रेम का होना..
प्रेम का होना..
सभ्यताओं की
बेड़ी और सीमाएं तोड़
प्रेम भागा है
खुद को जिंदा रखने को
कई कई बार
और फिर से जिंदा किया है
उसने नई
सभ्यताओं को।
सोच सकते हैं
सभी की ये आत्महत्या की
तैयारी है प्रेम की
जब वो देता जीवन उसको
जो मुश्किल कर दे
पनपना उसी का
अपने ही आंगन में
मज़बूर कर दे
भागना अपने ही
आंगन से।
असल मे प्रेम
कहीं ज्यादा परिपक्व है
जानता है वो
उसे समझने में सभ्यताऐं
चूकती ही रहेंगी
और वो भागता रहेगा
दुनिया के हर
संभव कोनो तक
जहां जहां
जीवन संभव है
और सृष्टि हमेशा
मुस्करायेगी उसकी
जिजीविषा पर
कि
प्रेम का होना
जीवन को होने देना है।