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Aarti Sirsat

Abstract

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Aarti Sirsat

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"प्रेम का भँवर"

"प्रेम का भँवर"

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लगने लगी है उन्हें भी 

अब इश्क की हवा...।

जिसकी अब तक

नहीं बनी है कोई दवा..।।


धीरे धीरे भूलने लगा 

है वो जमाने को...।

मन ही मन में मुस्कुराता है

देखकर उसकी सुंदरता को..।।


सोच सोच कर उसे, उसके 

ख्यालों में वो खोने लगा है...।

पल पल वो उसकी ओर 

बढने लगा है..।।


जीवन में हमनें भी वफा और 

बेवफाई का सितम देखा है...।

खुद को भी भूलने लगा है जब 

से उसनें उस हसीन को देखा है..।।


खुद के मन पर भी अब 

उसका कोई जोर नहीं रहा...।

मिल जाए कोई कदर करने वाला, 

अब ऐसा जमाना नहीं रहा..।।


मत फस ऐ नादान 

इस प्रेम के भंवर में...।

चारों तरफ़ दर्द ही दर्द है 

इस मतलबी संसार में..।।

     


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