प्रेम-बंधन
प्रेम-बंधन
प्रेम-बंधन,
असीमित, अलौकिक !
संसार-सार,
जीवन-विस्तार..,
आत्मीय आनंद..!
जुड़ते मन के तार।
प्रेम-बंधन जहां,
वहां सद्भावों का उत्कर्ष,
हो आनंद का उन्मेष।
देता परत्व को आकार,
हो मनुष्यत्व का प्रसार।
प्रेम बंधन जहां,
वहां प्रीति-प्रतीति..
झूठी है अनीति..!
कुटिल कुरीति..!
हो समत्व भाव,
चाहे हो अभाव।
प्रेम-बंधन है,
आत्मा का प्रसार..
अंतर्मन की पुकार..
भावों का द्वार..
बंधनों की हार।
प्रेम-बंधन जहां,
नहीं मनभेद..!
सब होते हैं एक,
चाहे हो नहीं समक्ष,
देश बसे या विदेश।