प्रौम्पट 21(पेंट बाय थॉमस
प्रौम्पट 21(पेंट बाय थॉमस
60-70 की उम्र हो गई।
निजता स्वतः ही खो गई।
आत्म सम्मान भी दांव पर लगाया।
तब कहीं बच्चों के साथ रहने का सुख पाया।
बहुत खुश हूं ऐसा सब को दर्शाया
पर यूं लगा खुद के लिए जी नहीं पाया।
एक दिन फिर ऐसा आया।
परमात्मा से जो ध्यान लगाया।
उस दिन खुद को अकेला ना पाया।
परमात्मा ने भी हाथ बढ़ाया।
पूरी जवानी काम करा था।
इकट्ठा अपना सम्मान करा था।
याद आया खुद के बुढ़ापे के लिए भी तो मैंने इंतजाम करा था।
बस माया मोह में बैठा था।
कंबल ने मुझे नहीं मैंने कंबल को पकड़ा था।
आज कंबल को छोड़ दिया जब।
परमात्मा के हाथ को पकड़ लिया जब।
मोह के जब से धागे टूटे
बंधन मेरे सारे छूटे।
आत्म निर्भर हो गया मैं।
मस्त जिंदगी जीता हूं मैं।
लेकर टॉमी को साथ में अब हर जगह ही घूमता हूं मैं
परमात्मा की गोद में सोता हूं मैं।
होनहार तो होकर रहेगी।
आज अगर अच्छी कटी है तो कल भी मेरी अच्छी कटेगी।
