परायापन
परायापन
जैसे जैसे उम्र के शतक
पार करती जा रही हूं
अपने ही घर में पराई
होती जा रही हूं।
परायापन तब महसूस होता है
जब कोई कहता है
बूढ़ा गई हो
चुप रहा करो
याद आते हैं वे दिन
जब राय पूछे बिना
एक कदम भी नहीं
लिया जाता था।
परायापन तब महसूस होता है
जब तबीयत बिगड़ने पर
कहा जाता है
बुढ़ापे में ऐसे ही
बीमार पड़ते हैं,
सहना सीखना चाहिए
याद आते हैं वह दिन
जब घर के किसी सदस्य के
बीमार पड़ने पर
सारे काम त्याग
भागती थी, अस्पताल की ओर।
परायापन तब महसूस होता है
जब बड़े घर के
एक छोटे से कमरे में रख दिया जाता है
जैसे मैं कोई फालतू सामान होऊँ।
परायापन तब महसूस होता है
जब कोई कहता है
राम-नाम जपने की उम्र आ गई है।
परायापन तब महसूस होता है
जब खाने पीने को लेकर
भेदभाव शुरू हो जाता है।
परायापन तब महसूस होता है
जब मुझे हर परिस्थिति में
नज़र अंदाज़ किया जाता है।
परायापन तब महसूस होता है
जब पार्टी के लिए
तैयार होने पर कहा जाता है
उमर का लिहाज करो।
ऐसा लगने लगा है
नहीं है इलाज
इस परायापन का।
