पराश्रित ना रहो बिटिया
पराश्रित ना रहो बिटिया
सुनहरे सपने बुने
नन्ही पलकों में।
महकी महकी खिली
बिखरी सी अलकें।
कोमल चंदन है मन
बावरे से नैना हैं।
बढ़ते रहना है आगे
स्वयं निश्चय है करना।
अपनी सतत जीवन धारा
नदिया सी बहती कलकल ।
प्रेम और स्नेह नेह बांटती
लाडली प्रिय बिटिया पलपल।
बिटिया रानी गुड़िया रानी
पढ़ना लिखना शिक्षित बनना।
जीवन की परिमित धूरी को
तू सदा अपने कर्म कसना।
पुराने सारे बंधन तोड़ो
बाधा मुख का उधर मोड़ो।
अपनी इच्छा शक्ति के बल,
अदम्य शक्ति सदृश बन सबल।
बनो आत्मनिर्भर रखो संभाव
दे दो संबल मन में प्रेमभाव।
सिर्फ विवाह नहीं जीवन लक्ष्य
स्वावलंबी बनना और विजय।
सँवारो ये जीवन कर्म कर
निखारो अस्तित्व को नित्य चर.
कर्मठता से सदा उन्नति करो
पराश्रित यूँ ना रहो कभी बिटिया!