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Krishna Bansal

Abstract

4.9  

Krishna Bansal

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प्रार्थना

प्रार्थना

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यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे 

जब तक जिऊँ 

सेवा करती रहूँ 

निष्काम व निस्वार्थ भाव से।

 

किसी दुखिया का सहारा बनूँ 

किसी भूखे को खाना खिलाऊँ

किसी अर्धनग्न को वस्त्र पहनाऊँ

किसी अनपढ़ को दो अक्षर पढ़ाऊँ

किसी रोगी के घाव भरूँ 

किसी की दुविधा दूर करूँ 

यही प्रार्थना है प्रभु तुम से 

जब तक जिऊँ 

सेवा करती रहूँ।


माना मैं कर्ण नहीं बन सकती

प्रयत्न मेरा यह रहे 

जो भी मेरे द्वार आए 

खाली हाथ न जाए।

 

माना मैं युधिष्टर नहीं बन सकती

प्रयत्न मेरा यह रहे 

सदैव सत्य की राह चलूँ।


जानती हूँ 

कृष्ण नहीं बन सकती

प्रयत्न मेरा यह रहे 

फल की इच्छा किए बगैर 

कर्म करती रहुँ

यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे 

जब तक जियूँ

सेवा करती रहूँ।


इतना गौरवशाली 

हमारे देश का इतिहास  

धन धर्म शिक्षा अध्यात्म के क्षेत्र में

शर्म से सिर झुकता है 

जब इसका नाम पिछड़े देशों में आता है 

कब कैसे और क्यों हुआ 

इसका पतन 

इस पर करना है हमको मनन।


ज़रूरत है इसे स्वच्छ रखने की

ज़रूरत है इसे सुधारने की 

ज़रूरत है इसे सुचारु प्रशासन की

ज़रूरत है इसे हरा-भरा करने की

ज़रूरत है पर्यावरण को ठीक करने की

दुनिया के नक्शे पर लाने की 

और उच्चतम देशों से लोहा मनवाने की।


इन सब के लिए कोशिश करती रहूँ

यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे 

जब तक जिऊँ

सेवा करती रहूँ

निष्काम और निस्वार्थ भाव से।


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