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अनजान रसिक

Inspirational

4.5  

अनजान रसिक

Inspirational

पर-परंतु से परों की उड़ान तक

पर-परंतु से परों की उड़ान तक

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लेकिन, किन्तु ,परंतु से ओत-प्रोत हमारी ज़िंदगी एक दिन मुहाने तक पहुँच ही जाएगी,

परंतु से पार पाने की प्रक्रिया सपना-मात्र बनकर पलकों तले ही दफन हो जाएगी।

ख्वाहिशें हृदय के किसी कोने में दब के मुक्कम्मल मुकाम पाने को प्यासी रह जाएंगी ,

उड़ान भरने को व्याकुल ज़िंदगी,एक बार फिर अपने पंख फड़फड़ाती रह जाएगी ।

बाज़ की तरह निफ्राम उड़ान भरने के लिए पर-मगर पर विश्लेषण की इतिश्री ज़रूरी है ,

सोच-विचार की क्रिया त्याग कर सपनों भरी एक उड़ान भरना ज़रूरी है।

सपनों को साकार करने के लिए नींद का टूटना भी ज़रूरी है ,

स्वप्न-मात्र देखना पर्याप्त नहीं होता

अक्सर ,पूर्ण निष्ठा व दृण संकल्प के साथ पग बढ़ाना भी ज़रूरी है।

सुहावने सपनों को उड़ान देने के लिए पर–मगर की इस द्वंद को जीतना ज़रूरी है,

ये ज़िंदगी एक कुरुक्षेत्र है जहां अर्जुन की जीत के लिए कौरवों का विध्वंस ज़रूरी है ।

टालमटोल की प्रक्रिया से किनारा कर पूरे उत्साह के साथ किनारे तक पहुँचना ज़रूरी है ,

विलंब- अवलंब की शैली को त्याग कर कार्यबद्धता का प्रदर्शन ज़रूरी है ।

वरना सुंदर भविष्य का सृजन एक सपना मात्र बन के पलकों के भीतर ही दफ़न हो जाएगा ,

अंजाम होगा ऐसा दर्दनाक कि आगाज से अन्त्येष्टि का सफर गुमनाम हो के खो जाएगा।


 


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