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Himanshu Charan

Romance

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Himanshu Charan

Romance

पंछी था, उड़ गया !

पंछी था, उड़ गया !

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कल तक था जो एक जहाँ,

अब दो टुकड़ों में चूर हुआ,

आज मुझे क्यों लगता है,

मैं खुद ही खुद से दूर हुआ।


कल ही की तो बातें थी,

जब मिलकर आँखें चार हुई,

इन्हीं आँखों से देखा सपना,

ढहकर चकनाचूर हुआ।


कल तक जि़द्दी दिल बेचारा,

खुद से मतलब रखता था,

अब और किसी पर अश्रु बहाता,

इतना क्या मजबूर हुआ।


नहीं मुकम्मल हो पाते ये,

दिल से दिल के रिश्ते क्यूं,

रह जाते हर बार अधूरे,

दुनिया का दस्तूर हुआ।


नज़रों के वो तीर तेरे कोई,

वार ना मुझ पर कर पाए,

पर इश्क़ लब्ज़ को जाना,

मैंने इतना काम ज़रूर हुआ।


दिल ही उसका घर था और,

दिल ही उसका आशियाना,

इस पिंजरे से उड़ कर पंछी,

नज़रों से ही फुर्र हुआ।


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