STORYMIRROR

SUBIR KUMAR PATI

Abstract

3  

SUBIR KUMAR PATI

Abstract

पिता का क्या एक दिन ही है होता

पिता का क्या एक दिन ही है होता

1 min
65

जिसकी ऊँगली पकड़ के तू चलना है सीखता,

जिसका खून तेरे नस नस में है बहता,

जिसके रोम रोम में तू ही है बसता,

उस पिता का क्या एक दिन ही है होता !


माँ अगर होती है जन्म दाता,

तो जीवन का आधार होता है पिता,

जिसका क़र्ज़ जो चाहके भी कभी चूका ना पाता,

उस पिता का क्या एक दिन ही है होता !


माँ की तरह अक्सर कोई पिता को प्यार जता ना पाता,

पर खुश नसीब है वो जिसके पास पिता है होता,

जिस पिता से ही तेरा हर दिन शुरू है होता,

उस पिता का क्या एक दिन ही है होता !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract