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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Drama Inspirational

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Gagandeep Singh Bharara

Abstract Drama Inspirational

फुटपाथ की ज़िन्दगी

फुटपाथ की ज़िन्दगी

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फुटपाथ की ज़िन्दगी, क्या है ये ज़िन्दगी?

महसूस जो कर सको, उस दर्द की नमी,


छोड़ कर घर अपना, मुसाफ़िर आये थे कभी,

अब है इक बिछौना, और छत पे चांदनी,


मिला जो मौका, कहीं तो दुकान लगा ली, वरना, कर मजदूरी, बाप की उधारी चुका दी,


ऐसा नहीं, यहाँ मिले बस दुखों की कहानी,

गा के गीत मल्हार, मिले खुशियों की रवानी,


भूख हो असीम, तो बांट रोटी ही खा ली,

ना मिला कोई, तो बस पानी से भुजा ली,


मिला गर काम, तो मजदूरी से कमा ली,

नहीं तो धूप में नंगे पाओं, भीख जुटा ली,


आंसू में डूबा कर, कभी हस के छुपा ली,

दर्दो धकन की दुनिया, अपने में समा ली,


बना के ऊंचे मकां, अपनी पनी सजा ली,

हुई किस्मत मेहरबां, तो दीवार बना ली,


खुशियों से अपनी, मुलाकात बड़ा ली,

यारों के संग फुटपाथ पे महफिल सजा की,


फुटपाथ की ज़िन्दगी, क्या है ये ज़िन्दगी ?

महसूस जो कर सको, उस दर्द की नमी।।


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