फोन करना मेघा !
फोन करना मेघा !
सो जाओ मेघा !
सुनो मेघा !
कब तक खड़ी रहोगी वहाँ खिड़की के पास ?
चुपचाप खड़ी हो बिना बात के,
यूं एक बजे रात के !
माना कि इस बार बात बड़ी है,
चोट सीधी दिल पर पड़ी है,
मगर जाने दो ना,
आज ठण्ड भी बहुत है,
रात भी बहुत है,
इस बार जाने दो ना !
तुम बस गोद में सर रखो,
और लेट जाओ !
मैं तुम्हारी ही जुल्फों से,
तुम्हारी पलकों को ढँक लूँगा,
हौले-हौले से माथे पर
मेरी उँगलियों की थपकियाँ !
सारी थकान उतार लेना,
जागी हुई हो कई रातों से,
आज सारी नींद पूरी कर लेना !
................
ट्रेन ने सिग्नल दिया
एक लम्बी बेरहम सीटी,
मैंने दाहिने हाथ से
तुम्हारे गाल को हौले से छुआ
और कहा
अच्छा तो फिर
और तुमने कुछ कहा नहीं
बस मुस्कुरा दी
मुझसे थोडा सा ज्यादा !
और फिर मैंने तुम्हें पटरियों के हवाले कर दिया
एक लम्बे बहुत लम्बे सफ़र के लिए
पर तब से मैं भी सफ़र में हूँ
कहानी के नहीं
वक्त के किरदारों के साथ !
बरसों गुज़र गए हैं इस बात को मेघा !
तुम्हे तो याद नहीं
पर मुझे अच्छी तरह याद है
कि कुछ और भी कहा था मैंने उस दिन
ट्रेन चलने के ठीक दस मिनट पहले
कि
बस ! यही कि
पहुंचकर फोन करना, मुझे !
.......................................
अधूरा घर, अधूरी कहानी !
बचपन में एक घर बना रहा था मैं
सुनो, संगमरमर का नहीं
मिटटी का !
अपने छोटे-छोटे हाथों से
तभी माँ ने आवाज़ लगाई
'अन्दर आ जाओ....
अँधेरा हो गया है !
ये घर कल बना लेना'
और
मैं चला गया अन्दर
उस रात माँ से लिपटकर सो गया ।
अगली सुबह जब सोकर उठा तो
देखा
आँगन में न वो मिटटी का घर था
और ना अब मैं बच्चा था
मैं उस एक रात में अपने बचपन को
खोकर अचानक बड़ा हो गया ।
मेघा !
तुम्हारी और मेरी कहानी ठीक
उस अधूरे मिटटी के घर कि तरह है
मासूम लेकिन अधूरी
शायद इसीलिए ये कविताएँ भी अधूरी हैं
हमारी अधूरी कहानी
और उस अधूरे मिटटी के घर की तरह !
.......................................................................................