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Nitu Mathur

Romance Tragedy

4  

Nitu Mathur

Romance Tragedy

फना ए इश्क

फना ए इश्क

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फना ए इश्क::


ये एहतियात कैसी के ताल्लुक खत्म हो जाए

मैं राह देखूं वो सामने से गैर बन के निकल जाए

ना गवारा है ऐसी हया शर्म मुझे ए यार...

जिंदगी गुजरेगी कैसे जब तक़दीर रूठ जाए,


ऐसे इम्हिहानों से जाने क्यूं अब जी घबराता है

तेरी ये नजरंदाजी घाव को हरा कर जाता है

 मानता हूं कि हर मोहब्बत मुकम्मल नहीं होती

ये बात दुनियां कहे तो ठीक है फिर भी...

पर खुद तेरा इनकार मेरी जान लिए जाता है,


एक बार करीब आ के नाराज़गी जाहिर करो

जो कि हो गर गुस्ताखी ,.कोई तो सज़ा दो

कसम खुदा की पहाड़ के पत्थर भी तोडूंगा

गहराई नाप के समंदर की खुद को डुबो दूंगा,


रोमियो मजनू रांझा फरहाद को भूल जाओगी

जब इस तरह ख़ाक ये फना ए इश्क देखोगी 

बस आखरी गुज़ारिश थी ये मेरी तरफ से

अब भूलना चाहोगी तो भी भूल ना पाओगी,


ना कहना फिर कि तुमने मुझे याद नहीं किया

मोहलत खत्म होते मैं खुद तुमसे दूर हो जाऊंगा

बना लूंगा तकदीर नई किसी नए सुकून जहां में

मैं अपने से दिलोदिमाग से तेरी सोच मिटा दूंगा,


फिर ना कहना..."फना ए इश्क फना ए इशक्र"

     



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