पहला कदम
पहला कदम
था पड़ा निर्जीव सा गर्त में
जब बूंद गिरी आशा की
सोया जीवन जाग गया
जब बढ़ा मेरा पहला कदम
तंग थे गलियों के रास्ते
अंधेरों में भटक रही थी कलम
लेखनी को धार मिली
जब बढ़ा मेरा पहला कदम
डरी सहमी सी थी लेखनी
आज चमचमा कर चल उठी
आग उगलती है कलम
जब बढ़ा मेरा पहला कदम
चारों दिशाओं में ख्याति है
सूर्य के प्रकाश की भांति है
नई मंज़िल की ओर बढ़ता कदम
जब बढ़ा मेरा पहला कदम
जो था पड़ा निर्जीव गर्त में
आज नन्हा बीज, वृक्ष हो गया
बह निकली जल धारा कलम
जब बढ़ा मेरा पहला कदम