फिर भी मैं पराई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ
बाबुल का घर छोड़
पिया अपने घर आई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ
बचपन खेला था जिस आंगन में
जिस आँचल ने पाला था
मां की ममता, पिता का प्यार
भाई-बहन का दुलार
सुखचैन सब जिसने दे डाला था
अर्पण कर दिया जिसने
अपना सारा जीवन
छोड़ उस बाबुल का उपवन
पिया तेरे मधुवन में आई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ।
मांगा जो भी धन-दौलत सम्मान
पूर्ण किया सब तेरी मांग
सब लेकर मैं आई
सीता बन सावित्री मैं लक्ष्मी स्वरूपा
तेरे घर आई मैं सुंदरी रूपा
करके समर्पण अपना जीवन
तेरी अर्धांगिनी मैं कहलाई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ।
