मैं हूँ भारत की कलम
मैं हूँ भारत की कलम
मैं हूँ भारत की कलम
मैंने ही भारत का इतिहास लिखा है
रामायण, गीता, कुरान लिखा है
मैंने ही देश का संविधान लिखा है
हिंदू, मुस्लिम सबके हाथों से चली हूँ
किया न कभी मैंने कोई भेदभाव
जिसने जैसा चाहा मुझसे
मैंने वैसा ही लिखा है
कहीं गरीबी, कहीं अमीरी
कहीं बेरोजगारी और बेहाली
हर दर्द के तड़पते हाल को लिखा है
मैंने जीत लिखा है हार लिखा है
जीवन का हर श्रृंगार लिखा है
नन्हें हाथों से डगमगाते चली हूँ
युवाओं के हाथो में भी ढली हूँ
जिसकी जैसी कृति
उसका वैसा बखान लिखा है
मैंने ही जग का विधान लिखा है
मैंने जीवन को लिखा है
मैंने ही मृत्यु को लिखा है
अमर कहानी विद्वानों की वाणी
मैंने ही भारत भूमि की
वीरता का बखान लिखा है
मैंने ही सारा जहान लिखा है।
