फिजूल
फिजूल
लेन- देन जिंदगी का उसूल है।
इसमें उलझना लेकिन,
बिलकुल फिजूल है।
भीड़ को भीड़ कहना समझ आता है।
भीड़ में खोकर खुद भीड़ बनना,
तमाशा ही तो कहलाता है।
बनानी है दुनिया अपनी।
तेरी दुनिया में अब डर लगता है।
ए ख़ुदा तेरा अस्तित्व खामोश लगता है।
गर हो मन में खंजर तो,
जहान बंजर ही लगता है ।
वरना हर मंजर
ख़ुशियों का समंदर लगता है।