फेमिनिज्म की स्पेशल चाय
फेमिनिज्म की स्पेशल चाय
☕ फेमिनिज़्म की स्पेशल चाय
(हास्य-व्यंग्य कथा)
✍️ श्री हरि
🗓️ 11.8.2025
मुंबई की हलचल भरी गलियों के बीच, एक धुंधली शाम में, "फेमिन क्लब" अपनी रौनक पर था। यह कोई साधारण क्लब नहीं था—दीवारों पर चिपके नारे जैसे “मैं हूं अपनी मर्ज़ी की मालकिन” और “पितृसत्ता को चाय में डुबोकर पी लो!” हवा में तैर रहे थे।
यहां मर्दों का प्रवेश वैसा ही वर्जित था, जैसा राजनीति में शुचिता। आज क्लब की मालकिन ने खास आयोजन रखा था—"चाय पे चर्चा — फेमिनिज़्म स्पेशल"।
चर्चा के लिए आईं चार प्रख्यात "फेमिनिस्ट रानियां"—
एकता कपूर — सास-बहू और अवैध संबंधों के इतने ड्रामे रचे कि अवैध संबंध खुद शर्मा गए। उल्लू सीरीज़ से जनता को उल्लू बनाकर माल बटोरा, और सेक्स को मसालेदार बनाने के इनाम में मोदी सरकार से पद्म-पुरस्कार पाया।
गौतमी कपूर — देवर को पति बनाने वाली, सास भी कभी बहू थी, कहता है दिल और घर एक मंदिर जैसे धारावाहिकों में प्रिय चेहरा; फना, कुछ ना कहो और स्टूडेंट ऑफ द ईयर जैसी फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी।
कल्कि कोचलिन — नोकिया फोन की प्रोमो गर्ल, ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा से चर्चित, अपनी फ्रेंच मोहकता से सबको मोहित करने वाली।
स्वरा भास्कर — ट्रोल क्वीन, उम्र से ज्यादा विवादों की मालकिन, टुकड़े-टुकड़े गैंग की ब्रांड अंबेसडर; तनु वेड्स मनु से पॉपुलर और रसभरी में बोल्डनेस की झलक दिखाने वाली।
सबसे पहले एंट्री हुई एकता कपूर की—हाई हील्स की ठक-ठक, आंखों पर चश्मा, हाथ में स्क्रिप्ट-सा कुछ।
"हेलो डार्लिंग्स! मैं आई हूं अपनी 'के' सीरीज़ की तरह—कंट्रोवर्सी से भरी!"
ट्रांसपेरेंट टॉप (बिना ब्रा) में फेमिनिज़्म का खुला प्रदर्शन करती हुई, हवा में हाथ लहराती जैसे संस्कृति को हवा में टांग रही हों, धम्म से कुर्सी पर बैठ गईं।
पीछे-पीछे गौतमी कपूर आईं—हमेशा की तरह शांत और सोफिस्टिकेटेड।
"एकता, तुम्हारी सीरीज़ देखकर तो लगता है फेमिनिज़्म का मतलब सिर्फ ड्रामा है!" उन्होंने चुटकी ली।
फिर आईं कल्कि—फ्रेंच चार्म के साथ, मुस्कुराती हुई।
"हाय गर्ल्स! मैं तो यहां आई हूं क्योंकि फेमिनिज़्म पर बात करने से बेहतर कुछ नहीं... लेकिन पहले चाय!"
आख़िर में स्वरा भास्कर—एन्ट्री सबसे जोरदार।
"क्या यार, ट्रोल्स से लड़ते-लड़ते थक गई हूं। चलो, चाय पीकर फेमिनिज़्म को चार्ज करते हैं!"
वेट्रेस ट्रे में चार कप गरम, खुशबूदार मसाला चाय लाई। सबने कप उठाए।
एकता—"वाह! ये चाय मेरी सीरीज़ की तरह स्पाइसी है। फेमिनिज़्म मतलब—अपनी मर्ज़ी से जीना, चाहे करियर हो या रिलेशनशिप। मैंने तो लेस्बियन रोल भी प्ले किए, लेकिन रियल लाइफ में... खैर, छोड़ो!"
कल्कि—"मैंने भी एक्सपेरिमेंट किए—रोज मर्द बदल-बदलकर देखे, पॉलीएमोरी ट्राई की, ओपन रिलेशनशिप भी। लेकिन असली मज़ा? कहीं नहीं। समाज हमें जज करता है, लेकिन बात खुलकर होनी चाहिए।"
स्वरा—"मैं तो मुफ्त में ही बदनाम हूं। कोई अफेयर नहीं, कोई स्कैंडल नहीं—फिर भी 'बोल्ड' का ठप्पा। फेमिनिज़्म का मतलब क्या सिर्फ बोल्ड होना है? या अपनी आवाज उठाना?"
गौतमी (मन में सोचते हुए—"इतने खुले विचार कि चेहरा हिजाब में छुपाती हो!" लेकिन कह दिया)—"फेमिनिज़्म चाय की तरह है—हर किसी का अपना स्वाद। मैं बच्चों को सिखाती हूं—लड़का-लड़की बराबर हैं। मगर समाज अभी तैयार नहीं।"
तभी दरवाजा खुला—दीपिका पादुकोण।
"दीपिका? तुम्हें तो इन्वाइट नहीं किया था!" एकता ने आंखें तरेरी।
दीपिका हंसी—"इन्वाइट की जरूरत है क्या? फेमिनिज़्म की चाय की खबर मिली, आ गई। वैसे, चाय? ये तो पितृसत्तात्मकता की निशानी है—दादी-नानी की रसोई से निकली। फेमिनिज़्म पर बात तो जाम लेकर होनी चाहिए—आंखों में नशा, दिल में आग, और होंठों पर प्यास।"
एकता—"सही कह रही हो! मैंने लेस्बियन बनकर भी देख लिया, डिल्डो-वाइब्रेटर सब ट्राई किया—लेकिन मज़ा? असली मर्द ही दे सकता है।"
कल्कि—"हां! मैंने दर्जनों मर्द बदले, मगर तलाश अब भी जारी है।"
स्वरा—"और मैं? एक फिल्म में बोल्ड सीन किया, तो एंटी-नेशनल का टैग लगा। फेमिनिज़्म का मतलब है—सेक्सुअलिटी को बिना शर्म के ओन करना।"
गौतमी—"मेरे लिए फेमिनिज़्म—छोटे-छोटे रिबेलियन। बेटी को सिखाना—अपनी बॉडी, अपनी चॉइस।"
चर्चा अब और तिक्त-मीठी हो चुकी थी।
दीपिका—"फेमिनिज़्म का असली टेस्ट लाइफ में है। मैंने 'छपाक' और 'पीकू' की, शादी के बाद भी अपनी स्पेस रखी।"
एकता—"सरोगेसी से बच्चा लिया—बिना शादी के। मर्द की जरूरत? सिर्फ मज़े के लिए!"
कल्कि—"तलाक के बाद भी बच्चा पैदा किया—फेमिनिज़्म ने यही सिखाया।"
स्वरा—"मैं कहती हूं—फेमिनिज़्म राष्ट्रवाद से बड़ा है—ये इंसानियत है।"
कप खाली हो चुके थे। आखिर में गौतमी ने मुस्कुराते हुए कहा—
"एक राज है—मैं अपनी बेटी के 16वें जन्मदिन पर वाइब्रेटर गिफ्ट देना चाहती थी, ताकि वो अपनी प्लेज़र को ओन करे। लेकिन समाज की नजरें... रोक गईं। अगली बार जरूर!"
सारी हंसी में फूट पड़ीं।
क्लब की शाम चटपटी हो चुकी थी। बाहर पितृसत्ता की धुंध थी, लेकिन इन पांच रानियों के बीच—फेमिनिज़्म जीवंत, चुलबुला, बोल्ड और बिंदास था।

