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VIVEK ROUSHAN

Abstract

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VIVEK ROUSHAN

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पहाड़

पहाड़

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अकेले बैठा-बैठा

जब कभी थक जाता हूँ

तो लिए चला जाता हूँ

खुद को पहाड़ों के बीच

पहाड़ जिन में कोमलता है

जिसका हृदय बहुत बड़ा है

बादलों की आगोश में सोया पहाड़

निर्जीव होकर भी सजीव बना रहता है

हरे-भरे पेड़ों को उगाता है

पानियों को आने-जाने का रास्ता देता है

खुद तटस्थ बनकर

हर आने-जाने वाले लोगों के

दुःख-दर्द को सुनता है

सभी के जख्मों पर मरहम लगाता

सभी को प्यार देता है

ये भूलकर कि

कोई उसे दर्द दे रहा है

कोई उसे तोड़ रहा है |


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