पढ़ो और बढ़ो
पढ़ो और बढ़ो
जीवन की राह में
ज्ञान है, एक मंजिल।
पढ़ो, बढ़ाओ और बनाओ
खुद को इसके काबिल।
धर्म कर्म, सच झूठ
अच्छा क्या, बुरा क्या।
बिना पढ़ाई, ज्ञान के
पाप क्या, पुण्य क्या।
जब लिया प्रण, पाठ का
जात उम्र का,बंधन नहीं।
शिक्षित होना और करना
इससे बड़ा कोई कर्म नहीं।
बच्चे बूढ़े और जवान
माता हो, चाहे बहनें।
लिखें पढ़े, सभी वे
स्कूल हो या घर में।
चरित्र, ज्ञान, आचरण निष्ठा
प्राप्त होता पढ़ने से।
जिंदगी उन्नति होती
पढ़ने और आगे बढ़ने से।
बिन शिक्षा, जीवन अधूरा
जैसे धड़कन बिना शरीर।
अक्ल बड़ी के भैंस
यही बनेगी सबकी तकदीर।
अपढ़ रहकर ना समझी में
हमने चुकाती, कीमत आजादी की।
अब होश आया, तो जाना
क्या महत्व है, पढ़ने लिखने का।
तो आओ, करें प्रतिज्ञा
सभी पढ़ेंगे और बढ़ेंगे।
परिवार समाज देश का नाम कर
'मधुर 'अज्ञान का, अंधकार मिटायेंगे।।