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Anil Jaswal

Abstract

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Anil Jaswal

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पैन और पेपर, निस्वार्थ दोस्त।

पैन और पेपर, निस्वार्थ दोस्त।

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जैसे-जैसे शब्द बनें,

फिर भाषाएं आई,

फिर पैन और पेपर का हुआ अविष्कार,

इंसान को जो भी मन भाता,

वो उकेर देता,

इंसान शिक्षित कहलाने लगा।


इन दोनों का प्रयोग,

हर जगह होने लगा,

जो भी कुछ भी,

लिखना चाहता,

झट पैन और पेपर उठाता,

और डट जाता।


लेकिन कुछ दिक्कतें भी आने लगी,

पेपर बनाने में,

कटने लगे पेड़,

हो गया परियावरण का विनाश।


फिर कई तरकीबें लड़ाई गई,

जैसे जितने पेड़ काटेंगे,

उससे दौगुने लगाएंगे,

जिससे पर्यावरण की न हो हानी,

पेपर की भी पूरी हो आवश्यकता।


लेकिन बात तब बनती,

अगर पेपर बनाया जाता,

हमारे वेस्ट से,

न पेड़ कटता,


और न कोई मुद्दा बनता,

हर कोई होता सहमत,

पर्यावरण भी रहता सुरक्षित।


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