STORYMIRROR

Shalinee Pankaj

Abstract

3  

Shalinee Pankaj

Abstract

पापी चित्त

पापी चित्त

1 min
199

कितनी भी

बुरी स्थिति हो 

ये छल नहीं होता कभी

मन कपट से दूषित 

नहीं होता कभी।


घड़ी परीक्षा की

बीत ही जाती है

अर्थ यही रह जाता है

समय कैसा गुजारा हमने।

 

कितनी सीढ़ी चढ़ पाओगे

बेईमानी के साथ तुम

धोखा देकर

चित्त को देख।


पल पल खुद ही मर जाओगे

लड़ो भी तो ईमान से

पीछे वार करें

वो सिर्फ गद्दार है।


चाकू उतारे तो है मौत के घाट

मुख छुरी करे हृदय तार तार

भूखे ही सोना पढ़े

सुख नींद तो आएगी।


पाप का एक निवाला भी 

कौन भला पचा पाया है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract