पापी चित्त
पापी चित्त
कितनी भी
बुरी स्थिति हो
ये छल नहीं होता कभी
मन कपट से दूषित
नहीं होता कभी।
घड़ी परीक्षा की
बीत ही जाती है
अर्थ यही रह जाता है
समय कैसा गुजारा हमने।
कितनी सीढ़ी चढ़ पाओगे
बेईमानी के साथ तुम
धोखा देकर
चित्त को देख।
पल पल खुद ही मर जाओगे
लड़ो भी तो ईमान से
पीछे वार करें
वो सिर्फ गद्दार है।
चाकू उतारे तो है मौत के घाट
मुख छुरी करे हृदय तार तार
भूखे ही सोना पढ़े
सुख नींद तो आएगी।
पाप का एक निवाला भी
कौन भला पचा पाया है।