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Jayantee Khare

Abstract

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Jayantee Khare

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नज़्मों का गांव

नज़्मों का गांव

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ये जो नज़्म और शायरी है

कोई नामुक़म्मल फ़साना नहीं

एक फ़लसफ़ा

एक तज़ुर्बे की मुक़म्मल डायरी है


ये दास्तां है जिसमें

शहनाइयां हैं

कुछ रौनकें हैं

तन्हाइयां हैं

एक उजाड़ बस्ती है

जिसके वीरां गलियारे हैं


कुछ भँवर हैं तो कुछ किनारे हैं

कुछ मझदार है

कुछ तिनके के सहारे हैं

वक़्ती राहतें हैं

कुछ बेवज़ह की चाहतें हैं


कुछ लगाव है

कुछ घाव हैं

तन्हा बेसहारा लोगों को 

आबाद हमनवा गांव देता है

ये नज़्मों का बरगद

मोहब्बत की राह पर थके मुसाफ़िर को

ठंडी सुक़ून की छांव देता है।


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