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Prem Bajaj

Romance

3  

Prem Bajaj

Romance

नज़म

नज़म

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खुदाया यूँ ना रूठा किजिए हमसे गुलअज़ार- शरीक़े -ज़िन्दगी , हमें मनाना नहीं आता ।

इल्म नहीं है हमें इश्क जताने का, जाहिदे-नाफहम  (नासमझ बैरागी ) हैं , लज्ज़ते- इश्क लेना नहीं आता ।


शीशा-ए-मय की तरह नाज़ुक हो तुम, दस्ते शौक इसलिए नहीं रखते हम , कहीं तुम पर ना कोई जब्र ना हो जाए । 


ग़ुल-ओ-ग़ुलशन को तकता हो जैसे कोई, तुम्हें देख कर तबस्सुम छुपाना नहीं आता ।

एहदे-शबाब है तुम पे सहवा ( शराब ) सा , ये भी तो बताना नहीं आता । 


बीमारे- ग़म है, फिर भी साज़े -उलफ़त बजाना नहीं आता ।

 ना रूठा किजिए यूँ हमसे , के हमें मनाना नहीं आता।


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