नववर्ष
नववर्ष
नववर्ष, हर्ष पर कोई विषाद ना रहे,
हर ओर हो उल्लास कोई निराश ना रहे,
खुशियां हम मनाएं बड़े जोर शोर से,
निज सभ्यता, सँस्कृति का मान भी रहे,
आधुनिकता में पूर्णतया लिप्त ना रहे,
अपने संस्करों पर अभिमान भी रहे,
आपस मे हो प्रेम कोई विवाद ना रहे,
रूठे अगर कोई तो मनाने का रिवाज भी रहे,
रामायण का मर्म हो, गीता का ज्ञान भी रहे,
कर्म ही प्रधान है जगत में भान ये भी रहे,
बुजुर्गों से लो ज्ञान संग आशीर्वाद भी रहे,
हर बच्चा हो खुश जब दादी, नानी संग में रहे,
जातिवाद, नारीवाद के जाल में ना फंसो तुम,
इंसान हो तुम इंसानों सा व्यवहार भी रहे,
बेशक हो दिखवा इस नए चलन का,
हिन्दू चैत्र नववर्ष है हमारा ये याद भी रहे,
कड़वी बाते भुला देना संग मिठास ही रहे,
आंसू ना हो किसी की आखों में सिर्फ प्यार ही रहे,
एक है हम एकता पर विश्वास भी रहे,
खंडित ना हो परिवार, समाज ये प्रयास भी रहे,
घोर तिमीर हो अगर तो अरूणोदय की आस भी रहे,
होगा सर्वदुःखो का नाश ईश्वर पर आस भी रहे,
नए संकल्प, नया विचार, नई राह भी रहे,
पुराने सपने, अपने घर आंगन का भान भी रहे,
सफलता मिले हर कदम -कदम पर तुम्हें,
असफलता की सीख संग सुविचार भी रहे,
भारत है ये हमारा किसी गैर का नहीं,
हम सब भारत माँ के लाल है ये याद भी रहे।।
